तमिलनाडु के दक्षिणी राज्‍य में स्थित यह विश्‍व विरासत स्‍थल तीन महान 11वीं और 12वीं शताब्‍दी के चोल मंदिरों से मिलकर बना है: बृहदेश्‍वर मंदिर, तंजौर, गंगाईकोंडाचोलीश्‍वरम, और एरातेश्‍वर मंदिर दर सुरम। ये तीन चोला मंदिर भारत में मंदिर वास्‍तुकला के उत्‍कृष्‍ट उत्‍पादन और द्रविण शैली को दर्शाते हैं।

बृहदेश्‍वर मंदिर तंजौर में स्थित हैं जो चोल राजाओं की प्राचीन राजधानी है। महाराजा राजा राज चोल ने दसवीं शताब्‍दी ए. डी. में बृहदेश्‍वर मंदिर का निर्माण कराया था और इसकी संकल्‍पना प्रसिद्ध वास्‍तुकार सामवर्मा ने की थी। चोल राजाओं को अपने कार्यकाल के दौरान कला का महान संरक्षक माना गया, इसके परिणाम स्‍वरूप अधिकांश भव्‍य मंदिर और विशिष्‍ट ताम्र मूर्तियां दक्षिण भारत में निर्मित की गई।

बृहदेश्‍वर मंदिर के शिखर पर 65 मीटर विमान पिरामिड के आकार में बनाया गया है, यह एक गर्भ गृह स्‍तंभ है। इसकी दीवारों पर समृ‍द्ध शिल्‍पकलात्‍मक सजावट है। द्वितीय बृहदेश्‍वर मंदिर संकुल का निर्माण राजेन्‍द्र - 1 द्वारा 1035 में पूरा किया गया था। इसके 53 मीटर के विमान के तीखे कोने और भव्‍य ऊपरी गोलाइयों में गतिशीलता का दृश्‍य तंजौर के सीधे और कठोर स्‍तंभ के विपरीत है। इसमें एक ही पत्‍थर से बने द्वारपालों की 6 मूर्तियां प्रवेश द्वार की रक्षा में खड़ी हैं और तांबे से अंदर सुंदर दृश्‍य बनाए गए हैं।

दो अन्‍य मंदिर गंगाईकोंडाचोलीश्‍वरम और एरातेश्‍वर भी चोल अवधि में निर्मित किए गए और ये वास्‍तुकला, शिल्‍पकला, चित्रकला और तांबे की ढलाई की सुंदर उपलब्धियों का दर्शाते हैं। तंजौर के ये विशाल मंदिर 1003 और 1010 के बीच चोल साम्राज्‍य के महाराजा, राजाराज के शासन काल में निर्मित किए गए थे जो पूरे दक्षिण भारत में फैला हुआ था और यह इसके आस पास के द्वीपों में था। दो आयतकाकार संलग्‍नकों से घिरा बृहदेश्‍वर मंदिर (ग्रेनाइट के खण्‍डों और आंशिक रूप से ईंटों से निर्मित) पर 13 तल वाला पिरामिडीय स्‍तंभ है, विमान है जो 61 मीटर ऊंचा है एवं इसके ऊपर बल्‍ब के आकार का एक पत्‍थर बना हुआ है। मंदिर की दीवारों पर समृद्ध शिल्‍पकला सजावट है।