संगमरमर में आश्‍चर्य जनक रूप से शिल्‍पकारी द्वारा माउंटआबू (राजस्‍थान) के दिलवाड़ा जैन मंदिर बनाए गए हैं जो विभिन्‍न जैन तीर्थंकरों के मठ हैं। अरासूरी पहाड़ी, अम्‍बाजी के पास, आबू रोड से 23 किलो मीटर की दूरी पर सफेद संगमरमर से निर्मित ये मंदिर जैन मंदिर वास्‍तुकला का असाधारण उदाहरण हैं।

इस समूह के 5 मठों में से 4 का वास्‍तुकलात्‍मक महत्‍व है। इन्‍हें सफेद संगमरमर के पत्‍थर से बनाया गया है, प्रत्‍येक में दीवार से घिरा एक आंगन है। आंगन के मध्‍य में मठ है जिसमें देवी देवताओं और ऋष देव के चित्र लगे हैं। आंगन के आस पास ऐसे कई छोटे छोटे मठ है, जहां तीर्थंकर के सुंदर चित्र के साथ पच्‍चीकारी वाले खम्‍भे की एक श्रृंखला प्रवेश से आंगन तक आती है। गुजरात के सोलंकी शासकों के मंत्रियों ने 11वीं से 13वीं शताब्‍दी तक इन मंदिरों का निर्माण कराया।

विमल वसाही यहां का सबसे पुराना मंदिर है, जिसे प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित किया गया है। विमल शाह, गुजरात के सोलंकी शासकों के मंत्री थे, जिन्‍होंने वर्ष 1031 ए. डी. में इसका निर्माण कराया था। इस मंदिर की मुख्‍य विशेषता इसकी छत है जो 11 समृद्ध पच्‍चीकारी वाले संकेन्द्रित वलयों में बनाई गई है। मंदिर की केन्‍द्रीय छत में भव्‍य पच्‍चीकारी की गई है और यह एक सजावटी केन्द्रीय पेंडेंट के रूप में दिखाई देती है। गुम्‍बद का पेंडेंट नीचे की ओर संकरा होता हुआ एक बिंदु या बूंद बनाता है जो कमल के फूल की तरह दिखाई देता है। यह कार्य का एक अद्भुत नमूना है। यह दैवीय भव्‍यता को नीचे आकर मानवीय आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रतीक है। छत पर 16 विद्या की देवियों (ज्ञान की देवियों) की मूर्तियां अंकित की गई है।

एक अन्‍य दिलवाड़ा मंदिर लूना वासाही, वास्‍तुपाला और तेजपाला हैं, जिन्‍हें गुजरात के वाघेला तत्‍कालीन शासकों के मंत्रियों के नाम पर नाम दिया गया है, जिन्‍होंने 1230 ए. डी. में इनका निर्माण कराया था। बाहर सादे और शालीन होने के बावजूद इन सभी मंदिरों की अंदरुनी सजावट कोमल पच्‍चीकारी से ढकी हुए हैं। इसका सबसे उल्‍लेखनीय गुण इसकी चमकदार बारीकी और संगमरमर की कोमलता से की गई शिल्‍पकारी है और यह इतनी उत्‍कृष्‍ट है कि इसमें संगमरमर लगभग पारदर्शी बन जाता है। दिलवाड़ा के मंदिर दस्‍तकारी के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है। यहां की पच्‍चीकारी इतनी जीवंत और पत्‍थर के एक खण्‍ड से इतनी बारीकी से बनाए गए आकार दर्शाती है कि यह लगभग सजीव हो उठती है। यह मंदिर पर्यटकों का स्‍वर्ग है और श्रृद्धालुओं के लिए अध्‍यात्‍म का केन्‍द्र है।