राजधानी दिल्‍ली में हुमायूं का मकबरा महान मुगल वास्‍तुकला का एक उत्‍कृष्‍ट नमूना है। वर्ष 1570 में निर्मित यह मकबरा विशेष रूप से सांस्‍कृतिक महत्‍व रखता है, क्‍योंकि यह भारतीय उप महाद्वीप पर प्रथम उद्यान - मकबरा था। इसकी अनोखी सुंदरता को अनेक प्रमुख वास्‍तुकलात्‍मक नवाचारों से प्रेरित कहा जा सकता है, जो एक अजुलनीय ताजमहल के निर्माण में प्रवर्तित हुआ। कई प्रकार से भव्‍य लाल और सफेद सेंड स्‍टोन से बनी यह इमारत उतनी ही भव्‍य है जितना की आगरा का प्रसिद्ध प्रेम स्‍मारक अर्थात ताजमहल। यह ऐतिहासिक स्‍मारक हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम (हाजी बेगम) ने लगभग 1.5 मिलियन की लागत पर निर्मित कराया था। ऐसा माना जाता है कि इस मकबरे की संकल्‍पना उन्‍होंने तैयार की थी।

इस स्‍मारक की भव्‍यता यहां आने पर दो मंजिला प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते समय ही स्‍पष्‍ट हो जाती है। यहां की ऊंची छल्‍लेदार दीवारें एक चौकोर उद्यान को चार बड़े वर्गाकार हिस्‍सों में बांटती हैं, जिनके बीच पानी की नहरें हैं। प्रत्‍येक वर्गाकार को पुन: छोटे मार्गों द्वारा छोटे वर्गाकारों में बांटा गया है, जिससे एक प्रारूपिक मुहर उद्यान, चार बाग बनता है। यहां के फव्‍वारों को सरल किन्‍तु उच्‍च विकसित अभियांत्रिकी कौशलों से बनाया गया है जो इस अवधि में भारत में अत्‍यंत सामान्‍य है। अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर ।। ने 1857 में स्‍वतंत्र के प्रथम संग्राम के दौरान इसी मकबरे में आश्रय लिया था। मुगल राजवंश के अनेक शासकों को यहीं दफनाया गया है। हुमायूं की पत्‍नी को भी यहीं दफनाया गया था।

यहां केन्‍द्रीय कक्ष में मुख्‍य इमारत मुस्लिम प्रथा के अनुसार उत्तर - दक्षिण अक्ष पर अभिविन्‍यस्‍त है। पारम्‍परिक रूप से शरीर को उत्तर दिशा में सिर, चेहरे को मक्‍का की ओर झुका कर रखा जाता है। यहां स्थित संपूर्ण गुम्‍बद एक पूर्ण अर्ध गोलाकार है जो मुगल वास्‍तुकला की खास विशेषता है। यह संरचना लाल सेंड स्‍टोन से निर्मित की गई है, किन्‍तु यहां काले और सफेद संगमरमर का पत्‍थर सीमा रेखाओं में उपयोग किया गया है। यूनेस्‍को ने इस भव्‍य मास्‍टर पीस को विश्‍व विरासत घोषित किया है।