पहली नजर में जंतर मंतर आधुनिक कला की एक कला दीर्घा प्रतीत होता है। यद्यपि यह जयपुर के सवाई जिया सिंह द्वितीय (1699 - 1743) द्वारा बनाई गई वेध शाला है। एक उत्‍सुक खगोल शास्‍त्री और मुगल दरबार के एक प्रतिष्ठित व्‍यक्ति के रूप में वे पीतल और धातु की बनी ज्‍योतिष शास्‍त्र से संबंधी वस्‍तुओं की त्रुटियों से असंतुष्‍ट रहते थे।

अपने शासक के संरक्षक में उन्‍होंने उस समय मौजूद खगोल विज्ञान की तालिकाओं में सुधार किया और अधिक विश्‍वसनीय उपकरणों की सहायता से एक ज्‍योतिष कैलेण्‍डर को अद्यतन किया। दिल्‍ली का जंतर मंतर उन पांच वेधशालाओं में से प्रथम है जिसे विशाल मेस्‍नरी उपकरणों के साथ उन्‍होंने निर्मित कराया।

इस वेधशाला में सम्राट यंत्र है, जो समान घंटों में सूर्य की घड़ी है। यहां स्थित राम यंत्र ऊंचाई संबंधी कोणों को पढ़ने के लिए है; जय प्रकाश यंत्र सूर्य की स्थिति को जानने तथा अन्‍य नक्षत्रीय पिंडों की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए है और यहां बनाया गया मिश्र यंत्र चार वैज्ञानिक उपकरणों का एक संयोजन है।‍