वो छोटी - सी पीली थैली , जिसमे ना जाने वो  कितने कीमती अबीर छुपा कर रखी थी । शायद ! पूजा के बाद सभी को तिलक लगाने के लिए खरीद कर लायी होगी ।

        मैं पीतल की थाली में मोटे -मोटे गाजर को काट कर प्रसाद बना रहा था । हम सभी विद्यार्थियों ने चंदा एकत्रित कर सरस्वती पूजा का आयोजन  किये थे । कुछ बच्चे पैसे ना देकर कुछ पूजा के समान या कोई प्रसाद के लिए फल दिया था । ये वो ही गाजर थी  , जिसे विक्रम ने प्रसाद  के लिए अपने खेतों से उखाड़ कर लाया था।

 गाजर मोटी रहने के कारण हम उस गाजर  के लिए उसका मजाक बना रहे थे ।  वो बेचारा चुप- चाप एक कोने में बैठ कर पताके काट रहा था और हम कुछ दोस्तों के साथ ठिठोली कर के प्रसाद काट रहे थे।

इन बातों में सब खोया हुआ जरूर था , लेकिन मेरी आँखें सिर्फ उसे ही ढूढ  रही थी ।

सांवली चेहरा , काली आंखे और लंबी वालो की रानी थी पुष्पा।

पुष्पा मेरे क्लास की सबसे निडर और बातूनी लड़की थी , वो पढने में भी अच्छी थी , यही कारण था कि उसके सामने हम लड़को की इज्जत बस एक मूर्ख पंडित जैसा रह गया था ।

 

इन कारण से हम सभी लड़के उससे चिढ़े रहते थे , परंतु मेरे  दिल में उसके लिए बहुत इज्जत था ।

वो हम लड़को से हमेशा लड़ती थी , गुस्से करती थी औऱ ना पढने की ताना भी देती रहती थी । लेकिन पता नही क्यों ! वह मुझे फिर भी बहुत अच्छी लगती थी ।

वह प्रत्येक दिन स्कूल समय से आ जाती थी । लेकिन आज सरस्वती पूजा हैं फिर वह स्कूल सुबह के 9 बजे तक नही आई थी ।

मेरी आँखें इधर - उधर उसे ही ढूढ रही थी ,

" अरे वाह ! " पुष्पा को देख कर मेरे मुंह से यह शब्द अचानक निकल पड़ा ।

आसमानी रंग की टॉप , नीली बिंदी , हाथों में पूजा थाली और बालों की दो चोटी बनाई हुई स्कूल के प्रथम दरवाज़े से प्रवेश की ।

उसे देख मेरी खुशी सातवें आसमान पर थी , दिल कह रहा था अभी उससे कुछ बातें करूँ । मगर उसकी लड़ाकू स्वभाव से डर रहा था , कही प्रिंसिपल से बोल कर ठुकाई ना करवा दे ।

मेरे स्कूल में लड़कियों से बातचीत करना सख्त मना था ,

 

" मैं प्रसाद काटने में हेल्प करूँ ? " पुष्पा बोली ।

 

मुझे आश्चर्य हुआ , जो कभी लड़ती थी , बेवकूफ समझती थी आज हेल्प करने की बात कर रही थी ।

मैं तो इसे सरस्वती मां की कृपा मान लिया था । परंतु दोस्त हमेशा कहते थे , सरस्वती मां सिर्फ ज्ञान देते हैं ना कि लड़कियाँ ।

 

" हाँ …. हाँ...  जरूर " मैंने लड़खड़ाती जुबान से बोला ।

अब हम दोस्तो के अलावे पुष्पा भी प्रसाद काटने लगी थी ।

कभी  -कभी गाजर को पकड़ने में मेरी अंगुलियाँ उसकी उंगलियों से स्पर्श कर जाती थी । वो आज बहुत खूबसूरत और खुश मिजाज लग रही थी ।

आधे घण्टे बाद पूजा शुरू हो गयी थी , सभी विद्यार्थी माँ की प्रतिमा के पास बैठा था ।

मैं और पुष्पा छोटी - छोटी समान को लाकर प्रतिमा के पास लाकर रख रहा था । उसके एक हाथ मे पीली थैली में अबीर की पुड़िया थी ।

सब चीजे व्यवस्थित कर मैं भी  प्रतिमा के पास बैठ गया और पुष्पा मेरे बगल में ही खड़ी थी ।

अचानक से एक लड़की ने पुष्पा के हाथ से अबीर की पुड़िया खिंचने की कोशिश किया , पुड़िया तो छीन नही पायी लेकिन वह दो भाग में जरूर बट चुका था । और उसकी पूरी अबीर मेरे सर पर गिर चुका था ।

अबीर माथे से होकर चेहरे पर फैल गयी थी , पूरे चेहरे अबीर से लाल हो गयी थी और उसके चेहरे शर्म से ।

सभी लड़के लड़कियां ठहाके मार कर हँस रहे थे , और मैं चुप - चाप अबीर को हटाने की कोशिश कर रहा था ।

पुष्पा अगले दिन मुझसे माफी मांगी थी और फिर उस दिन के बाद  हम दोनों एक अच्छे दोस्त बन गए थे । और ये दोस्ती कब प्यार में बदल गया , कुछ पता ही नही चला ।

आज भी जब सरस्वती पूजा समारोह होती हैं तो ये यादे ताजी हो जाती हैं ।

Author : Unknown

Source : Forwarded