करिश्मा

 
एक दिन बारह बजे दिन में एक छोटी-सी लड़की हांथ में रिंग लिए हुए पड़ोसी के दरवाजे पर नाच रही थी और उसका भाई जो कि महज तेरह साल का होगा, खूब तेज आवाज में गाना गा रहा था। और ढोल भी बजा रहा था।
मैं अपने छत से देख रही थी , हमारी पड़ोसन ने उसे खूब डाटा और दुत्कार कर भगा दिया।
उस लड़की का उतरा हुआ चेहरा,गर्म सड़क पर रिंग से करतब दिखाना और ठुमक ठुमक कर नाचना।मैं तो देखती ही रह गई।
उसका भाई बहन को लेकर जाने लगा, तो मैंने देखा कि वो मासूम बच्ची मेरी तरफ निराशा भरी आंखों से देख रही थी।
एक छोटी-सी लड़की ही तो है, बेचारी बहुत दुखी दिख रही थी।
मैंने इशारे से बुलाया और कहा बेटा क्या नाम है तुम्हारा।
वह बोली करिश्मा। मैंने कहा करिश्मा तुम मुझे खेल दिखाओगी क्या,वह हंसकर मूक स्वीकृति दे रही थी।
मैंने कहा मेरे दरवाजे पर आकर खेल दिखाओ।
उसका भाई और करिश्मा दोनों आ गये।
वह सड़क पर लेटकर रिग का कमाल दिखाने को हुई,उसी समय मैं बोली बेटा बस हमें खेल नहीं देखना, तुम ये बताओ कितने पैसे चाहिए करिश्मा झट से बोल पड़ी पचास।
मुझे हंसी आ गई, मैंने कहा ठीक है, तुम दोनों कुछ खाओगे क्या।
मैंने दो पैकेट बिस्किट दिए खाने को, दोनों खाने लगे।
फिर मैंने सौ रुपए देकर कहा बेटा हमने इसलिए पैसे दिए है।कि आज तुम इतनी धूप में खेल नहीं दिखाओगे,घर जाओ बहुत गर्मी है, दोनों खुश हो गए।जाते हुए मैंने करिश्मा को देखा, खुशी से उछल उछल कर चल रही थी।
उसे खुश देखकर मैं भी बहुत खुश हुई।

संदेश :

हमें अपने अलावा दूसरों की खुशी के बारे में सोचना चाहिए, आप के छोटे से प्रयास से आप किसी को कुछ पल की ही, सही खुशियां दे सकते है।