"ठीक है सुभाष अंकल अपना और आंटी का ध्यान रखियेगा, मै कॉल करती रहूँगी। बाय " बोलकार वीणा ने फोन रखा ही था की प्रवीण की हंसी सुनकर वो उसकी तरफ देखने लगी।

"क्या हुआ? क्यों हंस रहे हो?"

"कुछ नहीं तुम्हें बात करता देखकर हैरान हो जाता हूँ कैसे कर लेती हो तुम सुभाष अंकल या किसी भी अंकल आंटी से इतनी बात!"

"उसमें हैरानी की क्या बात है? लॉकडाउन चल रहा है, बुजुर्ग लोग हमसे ज्यादा ऊब जाते होंगे। हमारे पास मनोरंजन के कई साधन है उनके पास नहीं इसलिए कर लेती हूँ उन लोगों से थोड़ी देर बात।"

"वो तो ठीक है पर एक ही कहानी, वही किस्से तुम कितने बार सुनती हो! ऊब नहीं होती?"

"नहीं बल्कि मुझे उनकी आवाज़ में वही खुशी महसूस होती है जो पापा की आँखों में चमक देखकर होती थी जब वो कोई किस्सा सुनाते थे। बुजुर्गों के पास यादों का खजाना होता है जिसे वो जितना बांटे उतनी उनको खुशी मिलती है।"

"वैसे जब तक पापा थे तुम दोनों भी बहुत बात करते थे ना? ऐसा लगता था तुम बहु नहीं बेटी हो उनकी।"

"हाँ बहुत बातें करते थे हम, मैं सच में उन्हें बहुत मिस करती हूँ। अब तो बस उनके वो किस्से ही यादें है मेरे लिये।"

"जब मैं तुम दोनों को बात करते, हंसी मज़ाक करते देखता था मुझे बड़ी जलन होती थी। मन करता था मैं भी आकर पापा से उनके किस्से सुनु पर पता नहीं क्यों बचपन से उनके कड़क व्यक्तित्व से डर कर रहने की आदत हो गई थी। 

"तुम्हें पता है पापा भी यही चाहते थे की तुम भी मेरी तरह उनके साथ समय बिताओ, कुछ अपनी कहो कुछ उनकी सुनो।"

"माँ के साथ मेरी अलग ही ट्यूनिंग थी पर पापा हमेशा काम में व्यस्त रहे फिर मैं पढ़ाई के लिये बंगलौर चला गया और मैं व्यस्त हो गया तो हमारे बीच वो कनेक्शन कभी नहीं बन पाया। मुझसे बहुत शिकायतें रही होंगी ना उन्हें?"

"नहीं बिलकुल नहीं, बल्कि नाज़ था तुम पर। एक अच्छे बेटे की तरह उनकी हर जरुरतों का ध्यान रखा तुमने, हमेशा सम्मान दिया।"

"काश मैं भी उनके साथ थोड़ा समय बिता लेता, उनसे किस्से सुन लेता। मेरे पास भी उनकी यादों का खजाना होता पर अब बहुत देर हो गई।"

"अभी इतनी भी देर नहीं हुई" बोलकर वीणा ने एक पेनड्राइव  प्रवीण के लेपटॉप मे लगाकर उसमें से एक वीडियो चालू कर दिया जिसमें पापा अपने जिंदगी के कई किस्से सुना रहे थे, जिसे वीणा ने रिकॉर्ड किया था। वीडियो में अपने पापा को देख प्रवीण की आँखों से अश्रु धारा बह निकले।

"थैंक्यू वीणा, थैंक्यू सो मच मुझे यादों का खजाना देने के लिये।"

प्रवीण को पापा की यादों के साथ कमरे में अकेला छोड़ वीणा अपना मोबाइल उठाकर बाहर चल दी अपने माँ पापा को कॉल लगाने।

Author :- Unknown

Source :- Forwarded

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