भारत में सनातन काल से ही अनेकों जातियाँ विराजमान रही हे प्राय भारत में चार वर्णो का विश्लेषण मिलता हे इन्हीं वर्णो में से एक क्षत्रियो को ही वर्तमान में राजपूत या राजपुत्र कहकर पुकारा जाता हे।
राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को नहीं राजपूत कहा जाता है ,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म “सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय” को सर्वोपरी रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी।
राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला “राजपूत”,दूसरा “क्षत्रिय”और तीसरा “ठाकुर”,आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूतो में कुल 62 वंशो का उल्लेख मिलता हे।
राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में अनेक मतों और सिद्धांतो का उल्लेख मिलता हे , कुछ विद्वान् राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी हूणों से बताते हे तो कुछ दक्षिण के द्रविड़ो और आर्यो से किन्तु किसी के पास भी यह ठोस तर्क नहीं हे की राजपूत विदेशी थे।
मूल रूप से राजपूत शब्द की उत्पत्ति 6ठी शताब्दी से हुई बताते हे। तो क्या पहले राजपूत नहीं थे? भारत में राजपूत आदिकाल से ही विराजमान हे किन्तु पहले राजपुतो को अन्य नामो से पुकारा जाता था, जैसे- राजपुत्र, राजन्य, सामंत, क्षत्रिय, रजपुत्र, आदि।
धीरे-धीरे शब्दों में क्षेत्रों के हिसाब से फेरबदल होता गया और एक शब्द का उदय हुवा वह था “राजपूत” , राजपूतों में कुल 62 वंशो का उल्लेख मिलता हे जो इस प्रकार हे।
“दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण,
भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान, चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”
राजपूतों का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। सनातन धर्म के अनुसार राजपूतों का काम शासन चलाना होता है। कुछ राजपुत वन्श अपने को भगवान श्री राम के वन्शज बताते है। राजस्थान का अधिकांश भाग ब्रिटिश काल मे राजपुताना के नाम से जाना जाता था। जिसे भारत की आजादी के बाद राजपूतों ने अपनी रियासतें दान में दे-दी सयुक्त भारत के निर्माण हेतु और फिर राजपुताना का नाम राजस्थान कर दिया गया था।