इतिहास में महाराणा का नाम अपनी वीरता और साहस के साथ अपनी दृढ़ प्रण के लिए सदा के लिए अमर हे।
क्योकि आजीवन महाराणा प्रताप ने मुगलों से लोहा लिया था, और सैकड़ो युद्ध लड़े अनेकों बार मुगलो को धूल चटाई थी, और अकबर की तो इनका नाम सुनकर ही नींद उड़ जाया करती थी।
आप 16वी शताब्दी मे भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे महाराणा प्रताप का संघर्ष इतिहास में अमर है।
महाराणा प्रताप कभी भी मुगलों के सामने नहीं झुके महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को उदयपुर के संस्थापक उदय सिंह द्वितीय व महारानी जयवंता बाई के घर कुम्भलगढ़ में हुआ था।
Maharana Pratap को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था,और पिता उदयसिंह जी की मृत्यु के उपरान्त राणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी, 1572 को गोगुन्दा में हुआ।
सं. 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 500 भीलो और 20,000 सैनिको को साथ लेकर राणा प्रताप ने अकबर की विशाल 85,000 की सेना का सामना किया था।
महाराणा प्रताप
प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था।
इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया।
क्योंकि इसी क्रम में मानसिंह (1573 ई. में ), भगवानदास ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा राजा टोडरमल ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया।
इस तरह Maharana Pratap ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया और हमें हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध देखने को मिला |
Rana Pratap का मुगलों को खदेड़ कर भगाना : Maharana pratap ka itihas
हल्दीघाटी युद्ध तो महज अकबर व महाराणा के मध्य शुरू हुए युद्ध का आरम्भ था,और जिसमें अकबर की सेना को मुँह की खानी पड़ी थी।
इस युद्ध में ना तो Maharana Pratap ने हार मानी, ना अकबर पूरे मेवाड़ पर कब्जा कर पाया। क्योंकि ऐसे में यही कहा जा सकता है कि हल्दीघाटी का युद्ध निर्णायक नहीं, महज युद्ध की शुरुआत थी।
Maharana Pratap व मुगल सेना के मध्य आखिरी युद्ध तो दिवेर की धरती पर लड़ा गया और उस युद्ध में महाराणा ने विजय हासिल की।
1576 में हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा ने 1582 में रक्षात्मक युद्ध छोड़ आक्रामक युद्ध रणनीति अपनाई, सो दशहरे के पावन पर्व पर मुगल सेना पर आक्रमण की तैयारी की।
कुम्भलगढ़ से 40 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में सामरिक व भौगोलिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिवेर का चयन किया गया। दिवेर में अपनी सेना को सुसंगठित कर महाराणा ने मुगल थानों पर दशहरे के दिन जबरदस्त हमला किया।
क्योंकि थानों की सुरक्षा के लिए उस वक्त क्षेत्र में मौजूद अकबर का काका सेरिमा सुल्तान खां ने मुगल सेना की सभी टुकड़ियों को दिवेर में एकत्रित कर, Maharana Pratap का मुकाबला किया।
सुल्तान खां स्वयं हाथी पर सवार हो सेना का नेतृत्व कर रहा था। महाराणा के एक प्रतिहार सैनिक सोलंकी ने उसके हाथी पाँव काट दिए, तब सुलतान खां घोड़े पर सवार होकर यद्ध करने लगा।इसी बीच सुल्तान खां का सामना Maharana Pratap के पुत्र कुंवर अमरसिंह से हो गया। अमरकाव्य के अनुसार अमरसिंह ने अप्रतिम शौर्य का प्रदर्शन करते हुए भाले का ऐसा वार किया कि एक ही वार में सुलतान खां एवं उसका घोड़ा मारा गया। यहाँ तक कि सुल्तान खां के टोप व बख्तर भी दो फाड़ हो गए।
सुल्तान खां की युद्ध में मृत्यु के बाद मुगल सेना में हड़कंप व भगदड़ी मच गई और वह रणक्षेत्र छोड़ भाग खड़ी हुई। महाराणा की सेना ने मुगल सेना का पीछा कर उसे आमेट तक खदेड़ डाला।
उसके बाद एक एक कर कुछ अपवादों को छोड़ महाराणा ने अपने निधन से पहले, लगभग सारे मेवाड़ से मुगलों को खदेड़ दिया और मेवाड़ का आजाद करा दिया।
इस तरह अकबर के साथ चले संघर्ष में आखिरी युद्ध में Maharana Pratap ने जीत हासिल की और मेवाड़ को अपने अधिकार में ले लिया।
कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर युद्ध के परिणमों को देखते हुए इस युद्ध को ‘‘मेराथन’’ युद्ध की संज्ञा दी है।सो अब आप खुद तय कर सकते है कि अकबर-महाराणा संघर्ष में आखिरी जीत किसकी हुई।
हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़, Maharana Pratap का समर्थन करने वाले घुड़सवारों और धनुर्धारियों और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लडा गया था और जिसका नेतृत्व आमेर के मान सिंह ने किया था।
कहाँ जाता हे की इस युद्ध का परिणाम बहुत ही विनाशकारी हुवा था दोनों तरफ भयंकर जनहानि हुई थी ,मुग़लों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
उन्होंने आखिरी समय तक अकबर से सन्धि की बात स्वीकार नहीं की और मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करते हुए लड़ाइयाँ लड़ते रहे ।
आज भी इस बात पर लगातार बहस होती रही है कि इस युद्ध में अकबर की जीत हुई या महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की?क्योंकि इस मुद्दे को लेकर कई तथ्य और रिसर्च सामने भी आए हैं।
कहा जाता है कि लड़ाई में कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकला था। हालांकि आपको बता दें कि यह जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली थी. इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर भारी पड़ रही थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी।
Maharana Pratap को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था. प्रताप इनका और राणा उदय सिँह इनके पिता का नाम था।
इतिहास के अनुसार राणा उदय सिंह ने युद्ध की नयी पद्धति -छापा मार युद्ध प्रणाली इजाद की। वे स्वयं तो इसका प्रयोग नहीं कर सके परन्तु महाराणा प्रताप ,महाराणा राज सिंह एवं छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसका सफल प्रयोग करते हुए मुगलों पर सफलता प्राप्त की ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार Maharana Pratap का वजन 110 किलो और हाईट 7 फीट 5 इंच थी।
अकबर ने राणा प्रताप को कहा था की अगर तुम हमारे आगे झुकते हो तो आधा भारत आप का रहेगा, लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा मर जाऊँगा लेकिन मुगलों के आगे सर नही नीचा करूंगा।
प्रताप का भाला 81 किलो का और छाती का कवच का 72 किलो था. उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था।
प्रताप के घोड़े चेतक के सिर पर हाथी का मुखौटा लगाया जाता था. ताकि दूसरी सेना के हाथी कंफ्यूज रहें।
मुग़ल बादशाह अकबर ने एक बार कहा था की अगर Maharana Pratap और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते।
राणा प्रताप मुग़ल सम्राट अकबर से नहीं हारे । उसे एवं उसके सेनापतियो को धुल चटाई । हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप जीते थे |महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी में पराजित होने के बाद स्वयं अकबर ने जून से दिसंबर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा पर आक्रमण किए, परंतु महाराणा को खोज नहीं पाए, बल्कि महाराणा के जाल में फंसकर पानी भोजन के अभाव में सेना का विनाश करवा बैठे। थक हारकर अकबर बांसवाड़ा होकर मालवा चला गया। पूरे सात माह मेवाड़ में रहने के बाद भी हाथ मलता अरब चला गया।
1. शाहबाज खान के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध तीन बार सेना भेजी गई परंतु असफल रहा। उसके बाद अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध सेना भिजवाई गई और पीट-पीटाकर लौट गया। 9 वर्ष तक निरंतर अकबर पूरी शक्ति से महाराणा के विरुद्ध आक्रमण करता रहा। नुकसान उठाता रहा अंत में थक हार कर उसने मेवाड़ की और देखना ही छोड़ दिया था ।
2. तथ्यों के अनुसार महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लोहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन-रात राणा कि फोज के लिए तलवारे बनाई इसी समाज को आज हरियाणा राजस्थान में गाडिया लुहार कहते हैं।
3. ऐसा क्षण महाराणा प्रताप के जीवन में कभी नहीं आया कि उन्हें घांस की रोटी खानी पड़ी अकबर को संधि के लिए पत्र लिखना पड़ा हो। इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप ने सुंगा पहाड़ पर एक बावड़ी का निर्माण करवाया और सुंदर बगीचा लगवाया| महाराणा की सेना में एक राजा, तीन राव, सात रावत, 15000 अश्वरोही, 100 हाथी, 20000 पैदल और 100 वाजित्र थे। इतनी बड़ी सेना को खाद्य सहित सभी व्यवस्थाएं महाराणा प्रताप करते थे। फिर ऐसी घटना कैसे हो सकती है कि महाराणा के परिवार को घांस की रोटी खानी पड़ी। अपने उतरार्ध के बारह वर्ष सम्पूर्ण मेवाड़ पर शुशाशन स्थापित करते हुए उन्नत जीवन दिया ।
4. मेवाड़ के आदिवासी भील Maharana Pratap को अपना बेटा मानते थे और राणा जी बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे आज भी मेवाड़ के राज चिह्न पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ से भील।
5. महाराणा उदय सिंह ने युद्ध की नयी पद्धति -छापा मार युद्ध प्रणाली इजाद की। वे स्वयं तो इसका प्रयोग नहीं कर सके परन्तु Maharana Pratap ,महाराणा राज सिंह एवं छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसका सफल प्रयोग करते हुए मुगलों पर सफलता प्राप्त की ।