संगम
चाची एक लड़की देखी है भाई की शादी करोगी क्या?
नहीं रे!
हम क्या करेंगे
आजकल तो शादी ब्याह ढूंढ़ने का रिवाज ही खत्म हो गया।
पढ़ते पढ़ते खुद ही साथी ढूढ़ लेते हैं।
पता नहीं हो सकता है राजू ने भी ढूंढ़ा हो।
कहते हुए वो भीतर चाय लेने चली गई।उतने में रेखा और राजू की आंखें आपस में मिली मानों कह रही हो तुम कहो तो मान जाएगी हम कैसे कहें।
तो उसने भी इशारों में कहा कोशिश करते हैं इतने में चाय का प्याला लिए रज्जो आ गई।
और चाय पकड़ा ही रही थी कि रेखा ने उन्हें फोटो दिखाते हुए कहा ,
कैसी है लड़की। तो उस पर एक नजर डालते हुए बोली पास ही बैठे अपने भाई से पूछ ले मेरा क्या है मैं तो हां कर ही दूंगी।
इस पर रेखा ने फोटो राजू की तरफ बढ़ाया तो उसने कहा
मां की पसंद मेरी पसंद और वो उठ कर भीतर चला गया।
बात आई गई खत्म हो गई।मां तक बात तो पहुंच ही गई।
इधर राजू का इश्क परवान चढ़ने लगा।
पर कैरियर को ध्यान में रखते हुए , दोनों ने पढ़ाई पूरी की और जॉब भी पक्का हो गया।
जब जॉब पक्का हो गया तो तो रेखा ने फिर बात छेड़ी चाची अब तो नौकरी भी करने लगी है लड़की कहो तो बात चलाऊ, कहते हुए फिर छेड़ा।
इस पर रज्जो तैयार तो हो गई पर डर रही थी कि इतनी पढ़ी लिखी लड़की पता नहीं इस घर में टिक पायेगी कि नहीं पर चुप रही।नौकरी आज की जरूरत जो है दोनों ने कमाए तो गृहस्थी कैसे चले।
करते कराते वो घड़ी भी आई जब वो घोड़ी में चढ़ गया और डोली में बिठा के सारे रस्मों रिवाज के बाद उसे ले आया।
बाद में पता चला कि ये उसी की पसंद थी।वो तो बीच में रेखा दी को इसलिए लाया कि अपने शादी की बात खुद कैसे करता।
इस पर रज्जो बहुत खुश हुई कि चलो भाग कर शादी नहीं की पूरे रीति-रिवाज के साथ ब्याह कर लाया ।
ब्याह के बाद सब कुछ ठीक ठाक चला इस बीच उसने ये महसूस किया कि स्वभाव की अच्छी भी है और मिलनसार भी इतने ऊंचे ओहदे पे होने के बाद भी घमंड नाम की चीज नहीं।
सभी का ख्याल रखना आदर सत्कार करना जैसे उसके जीवन का अभिन्न अंग है।
फिर भी उसने पूछा बहु शादी के बाद तुम्हारा पहला सुहाग का व्रत है क्या कल तुम वट सावित्री का व्रत करोगी।
तो उसने कहा।
हां मां कल मैं छुट्टी ले लूंगी और सोलह श्रृंगार करके विधि विधान के साथ व्रत करूंगी।
फिर क्या था शाम से ही सारी तैयारियां शुरू हो गई
और सुबह रसोई में सासू मां के बताए अनुसार बरगद और पूड़ी बनाकर सारी तैयारी की फिर खुद तैयार होके पूजा की यह देख रज्जो की आंखें भर आईं।
ऐसी पढ़ी लिखी संस्कारी बहू
भला आज के जमाने में कहां मिलती है।
दिव्या है तो आधुनिक पर सारे तीज त्यौहार व्रत उपवास ऐसे करती है जैसे अपने समय की हो बस यही देखकर रज्जो खुश रहती है।कि कुछ भी हो मेरी बहु तो लाखों में एक है।
स्मार्ट लोगों के बीच खड़ा कर दो तो कोई काट नहीं सकता और संस्कृति और संस्कार की बात हो तो ऐसे निभाती है जैसे उसे सब कुछ आता है।वो तो आधुनिकता और संस्कारों का संगम है सोचते हुए पैर छूने आई बहू को गले से लगा लिया।