महाबलीपुरम दक्षिण भारत के शहर चेन्नई से लगभग 60 किलो मीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित एक मंदिर कस्बा है। यहां महाबलीपुरम के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं; तट मंदिर और रथ गुफा मंदिर इनमें से सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।
महाबलीपुरम का तट मंदिर चेन्नई के 50 किलो मीटर दक्षिण में स्थित एक तटीय गांव है, जिसका निर्माण राज सिंह के कार्यकाल में सातवीं शताब्दी के दौरान किया गया था और वे पल्लव कला के पुष्पों का चित्रण करते थे। इन मंदिरों में एक दम ताजा कर देने वाले त्रुटि रहित शिल्प हैं जो ग्रेंडियोज़ द्रविणियन वास्तुकला से भिन्न है और जिसमें सुरक्षात्मक ब्रेक वॉटर के पीछे तरंगों पर स्तंभ बनाए जाते थे। सुंदर बहुभुजी गुम्बद वाले इस मंदिर में भगवान विष्णु और शिव का निवास है। ये सुंदर मंदिर हवा और समुद्र के झोंकों से परिपूर्ण है और इन्हें यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है।
महाबलीपुरम का भव्य 'रथ' गुफा मंदिर सातवीं और आठवीं शताब्दियों में पल्लव राजा नरसिंह द्वारा निर्मित कराया गया था। इस मंदिर की पत्थर को काट कर की गई शिल्पकारी की सुंदरता पूर्व पल्लव शासकों की कलात्मक रुचि को दर्शाती है। इसे विशेष रूप से इसमें बनाए गए रथों के लिए जाना जाता है (यह मंदिर रथ के आकार का है), मंडप (वन गुफा) के रूप में है जिसमें खुली हवा के विशाल द्वार हैं जिन्हें 'गंगा के उत्तराधिकारी' कहा जाता है और इसमें भगवान शिव की महिमा के हजारों शिल्प बनाए गए हैं।
महाबलीपुरम में आठ रथ हैं जिनमें से पांच को महाभारत के पात्र पांच पाण्डवों और एक द्रौपदी के नाम पर नाम दिया गया है। इन पांच रथों को धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, द्रौपदी रथ, नकुल और सहदेव रथ के नाम से जाना जाता है। इनका निर्माण बौद्ध विहास शैली तथा चैत्यों के अनुसार किया गया है अपरिष्कृत तीन मंजिल वाले धर्मराज रथ का आकार सबसे बड़ा है। द्रौपदी का रथ सबसे छोटा है और यह एक मंजिला है और इसमें फूस जैसी छत है। अर्जुन और द्रौपदी के रथ क्रमश: शिव और दुर्गा को समर्पित हैं।