मिर्जा राजा जयसिंहजी व शिवाजी के मध्य पुरन्दर की संधि हुई थी, इससे पहले इतिहास में पढाया जाता है कि राजा जयसिंहजी ने शिवाजी की सोते समय पगड़ी मंगावा ली थी और उनके सिरहाने पत्र रखवा दिया था कि या तो सुबह आकर मुझसे मिलना, नहीं तो आज पगड़ी मंगवाई है वैसे ही आपका मस्तक भी मंगवा सकता हूँ | यह पत्र पढने के बाद ही शिवाजी अपनी माता से मंत्रणा कर जयसिंहजी से मिलने आये और संधि हुई | जयसिंहजी ने शिवाजी की पगड़ी मंगवाने के पीछे का रहस्य कछवाहों की वंशावलियों में दर्ज है कि वह संधि सूरजमलजी भोमिया (लोक देवता) की कृपा से हुई थी |
इन वंशावलियों के सन्दर्भ से “पांच युवराज” पुस्तक में लिखा है कि – एक रोज भोमियाजी सूरजमलजी ने रात्री में राजा जयसिंहजी को दर्शन दिए व कहा कि आमेर के महलों में मेरी जोत होती थी, जिसे तुम्हारे कर्मचारियों ने बंद करवा दी| राजा ने कहा कि आपकी जोत तो चालु हो जायेगी, पर क्या आप कभी मेरी मदद करेंगे ? तब भोमियाजी ने कहा – जब जरुरत पड़े तो याद कर लेना | राजा ने उनकी जोत पुन: आरम्भ करवा दी |
सन 1655 ई. में जयसिंहजी पुरन्दर पहुंचे, वहां शिवाजी से भयंकर युद्ध हुआ | किला जीतना आसान नहीं था | राजा ने भोमियाजी को याद किया तो वे प्रकट हो गये | तब राजा ने भोमियाजी को कहा कि – रात को सोते हुए शिवाजी की पगड़ी मुझे लाकर दो और यह एक पत्र उनके सिरहाने रख देना | भोमियाजी ने यही किया, वे शिवाजी की पगड़ी ले आये और पत्र उनके सिरहाने रख आये | जिसे पढने के बाद शिवाजी ने अपने सलाहकारों व माताजी से मंत्रणा की व मिर्जा राजा जयसिंहजी से मिले |
इस तरह आमेर नरेश व शिवाजी महाराज के मध्य हुई संधि भोमियाजी (लोक देवता) सूरजमलजी की कृपा से मानी गई जो कछवाहों की वंशावलियों में दर्ज है | ज्ञात हो सूरजमलजी आमेर के युवराज थे, पर वे किसी कारणवश आमेर के राजा नहीं बन सके और एक षड्यंत्र द्वारा उन्हें जहर देकर मारा गया था | आज भी दौसा में उनका स्थान बना है और वे स्थानीय लोगों की आस्था के केंद्र है | लोग उनसे मन्नतें मांगते है और पूर्ण होने पर सवामणि आदि का प्रसाद चढाते हैं |