"दीदी ओ दीदी तनी बाहर आबो ने।
कौन है? हाथ पोंछती निम्मी किचन से बाहर आ कर देखती है, एक भिखारिन जैसी औरत बैठी है। जगह 2से फटी साड़ी से झांकता उसका शरीर, कमजोर दिख रही थी।
मुझे घूरते देख सहम गई और अपने हाथ छुपा लिए।
*मैंने पुछा क्या है?
दीदी एगो दुगो साड़ी है त दे द!
मैंने कहा ठीक है । कह अंदर से एक सुती और एक सिथेटिक साड़ी लाकर दे दी, और कहा पहन लो
तेरी फटी साड़ी से बदन दिख रहा है।
नही दीदी बेटी के देवे के छै
मैने पूछा कहां है बेटी?
घर मा उकर शादी छै न, एगो आरो बड़ियां रंग है त दे द न
आरो कुछ पैसा भी भगवान तोरा भला करतो वो कह कर
हाथ को नीचे साड़ी में छुपा लेती है।
"भिख मांग कर इतना ले दे कर शादी करेगी, इतने में मेरे पति आकर कहते हैं अरे कितना जिरह करती हो दे दो न।
मैने उसे रुकने कह कर अंदर चली गई।
मेरे पास एक साड़ी थी जो मुझे पसंद नहीं थी पर अच्छी
साड़ी थी तो मैंने शादी है बेटी की सोच कर ak डब्बा चूड़ी और सौ रुपए लाकर दे दी।
साड़ी देख कर वो बहुत खुश हुई, चूड़ी पैसे देख उसके आंखों से आंसू निकल आए।
मुझे उसकी खुशी देख बहुत सुकून मिला। भूखी होगी
ठहर तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूं।
इतने में मेरी जेठानी आकर चिल्लाने लगी उस पर
तू.. तू अंदर कैसे आई? तेरी इतनी हिम्मत निकल यहां से।
ये सब तूने दिए निम्मी
जी दीदी, पर हुआ क्या? आप इसे इस तरह क्यूं कह रही हैं।
"तुम नही जानती, इसकी हालत तो देख।
देख ही रही हूं कह बेचारी... कह निम्मी अंदर चली गई
उसके लिए प्लेट में खाना और पानी लेकर आती है
और उसे देती है।
पर वो कहती है नीचे रख दो दीदी,
नही खा ले पहले मैंने कहा।
फिर से मेरी जेठानी गुस्सा करती है, नीचे क्यूं रखना है
हाथ में ले न, लेगी कैसे हाथ पैर सही हो तब न।
ये क्या बोल रही है दी सही तो है।
नहीं २इसे बोल दिखाने दी गुस्से में कहती है।
मैने उसे दिखाने कहा तो वो रोती हुई अपना हाथ पाव दिखाने लगी।
उसके हाथ पाव में पट्टियां बंधी हुई थी।
"क्या हुआ है ? मैने पुछा ।तो वो रोने लगी और बताने
लगी।
दीदी हम्मे अच्छे रहियो, लोगों के घरो में काम करी के
बेटा बेटी के पोस पाल क बड़ा करे।
तुम्हारा पति? मैने पूछा
ऊ रिक्श चलाबे छै, फिर कहने लगी ak बार मेरा हाथ पैर फुल गया और घाव हो गया डाक्टर से दवाई ले के खाए तो ठीक हो गया, फिर कुछ महीना बाद हो गया और छूट ही नही रहा था , घाव से पानी खून बहते रहता था।
अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कहा
ये कोढ़ है।
"ये सुन वो लोग घबरा कर रोने लगे की अब क्या करे कहां जाए।
"मैने पुछा फिर?
फेरू की दीदी जेकरा पाली पोसी के बड़ा करे, वही
सब मिली निकाली देलकी।
अब भिख मांगी के आपने गुजारा करे छी।
सुने बेटी के सादी है त न रहलो गेलई एही ले
मांगी के दे देंगे मां हैं न।
"उसकी दुःख भरी कहानी सुनकर मेरे आंखों से झर झर
आंसू बहने लगे,और मेरी जेठानी तमतमाती हुई चली गई।
मैं ये सोच हैरान रह गई, मां कितना कुछ करती है बच्चों के लिए, और संतान मां बाप को बिना इलाज के लावारिस
सड़कों पर भटकने छोड़ दिया। और पति......
"ये शरीर का कोढ़ नही , इंसान की इंसानियत
और विकृत मानसिकता का कोढ़ है।