श्री हरमंदिर साहिब को श्री दरबार साहिब या स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है (इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण) और यह अमृतसर (पंजाब) में स्थित सिक्खों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर सिक्ख धर्म का सहनशीलता तथा स्वीकार्यता का संदेश अपनी वास्तुकला के माध्यम से प्रवर्तित करता है, जिसमें अन्य धर्मों के संकेत शामिल किए गए हैं। दुनिया भर के सिक्ख श्री अमृतसर आना चाहते हैं और श्री हरमंदिर साहिब में अपनी अरदास देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करना चाहते हैं।
गुरु अर्जन साहिब, पांचवें नानक, ने सिक्खों की पूजा के एक केन्द्रीय स्थल के सृजन की कल्पना की और उन्होंने स्वयं श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला की संरचना की। पहले इसमें एक पवित्र तालाब (अमृतसर या अम़ृत सरोवर) बनाने की योजना गुरू अमरदास साहिब द्वारा बनाई गई थी, जो तीसरे नानक कहे जाते हैं किन्तु गुरू रामदास साहिब ने इसे बाबा बुद्ध जी के पर्यवेक्षण में निष्पादित किया। इस स्थल की भूमि मूल गांवों के जमींदारों से मुफ्त या भुगतान के आधार पर पूर्व गुरू साहिबों द्वारा अर्जित की गई थी। यहां एक कस्बा स्थापित करने की योजना भी बनाई गई थी। अत: सरोवर पर निर्माण कार्य के साथ कस्बों का निर्माण भी इसी के साथ 1570 में शुरू हुआ। दोनों परियोजनाओं का कार्य 1577 ए.डी. में पूरा हुआ था।
गुरू अर्जन साहिब ने लाहौर के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा इसकी आधारशिला रखवाई जो दिसम्बर 1588 में रखी गई। इसके निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण गुरू अर्जन साहिब ने स्वयं किया और बाबा बुद्ध जी, भाई गुरूदास जी, भाई सहलो जी और अन्य कई समर्पित सिक्ख बंधुओं के द्वारा उन्हें सहायता दी गई।
ऊंचे स्तर पर ढांचे को खड़ा करने के विपरीत, गुरू अर्जन साहिब ने इसे कुछ निचले स्तर पर बनाया और इसे चारों ओर से खुला रखा। इस प्रकार उन्होंने एक नए धर्म सिक्ख धर्म का संकेत सृजित किया। गुरू साहिब ने इसे जाति, वर्ण, लिंग और धर्म के आधार पर किसी भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुगम्य बनाया।
इसका निर्माण कार्य सितम्बर 1604 में पूरा हुआ। गुरू अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरू ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरू ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया। इस कार्यक्रम के बाद "अथ सत तीरथ" का दर्जा देकर यह सिक्ख धर्म का एक अपना तीर्थ बन गया।
श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण सरोवर के मध्य में 67 वर्ग फीट के मंच पर किया गया है। यह मंदिर अपने आप में 40.5 वर्ग फीट है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में इसके दरवाज़े हैं। दर्शनी ड्योढ़ी (एक आर्च) इसके रास्ते के सिरे पर बनी हुई है। इस आर्च का दरवाजे का फ्रेम लगभग 10 फीट ऊंचा और 8 फीट 4 इंच चौड़ा है। इसके दरवाजों पर कलात्मक शैली ने सजावट की गई है। यह एक रास्ते पर खुलता है जो श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य भवन तक जाता है। यह 202 फीट लंबा और 21 फीट चौड़ा है।
इसका छोटा सा पुल 13 फीट चौड़े प्रदक्षिणा (गोलाकार मार्ग या परिक्रमा) से जोड़ा है। यह मुख्य मंदिर के चारों ओर घूमते हुए "हर की पौड़ी" तक जाता है। "हर की पौड़ी" के प्रथम तल पर गुरू ग्रंथ साहिब की सूक्तियां पढ़ी जा सकती हैं।
इसके सबसे ऊपर एक गुम्बद अर्थात एक गोलाकार संरचना है जिस पर कमल की पत्तियों का आकार इसके आधार से जाकर ऊपर की ओर उल्टे कमल की तरह दिखाई देता है, जो अंत में सुंदर "छतरी" वाले एक "कलश" को समर्थन देता है।
इसकी वास्तुकला हिन्दु तथा मुस्लिम निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करता है तथा इसे विश्व के सर्वोत्तम वास्तुकलात्मक नमूने के रूप में माना जा सकता है। यह कई बार कहा जाता है कि इस वास्तुकला से भारत के कला इतिहास में सिक्ख प्रदाय की एक स्वतंत्र वास्तुकला का सृजन हुआ है। यह मंदिर कलात्मक सौंदर्य और गहरी शांति का उल्लेखनीय संयोजन है। यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक सिक्ख का हृदय यहां बसता है।