कलह
कोरोना के कारण पुणे से रंजन और रवीना अपने शहर आ गए थे, क्योंकि फ्लैट का किराया बेकार में क्यों भरे । सारा परिवार मम्मी पापा, पोता जॉली बहुत खुश थे । अब यहीं पर वर्क फ्रॉम होम होगा । दोनो अलग अलग कमरों में मीटिंग में व्यस्त रहते थे, मम्मी विमला पर काम का ज्यादा बोझ था, क्योंकि मेड भी नही आ पा रही थी । फिर भी विमला खुश थी, सूने से घर मे अब चहल पहल थी ।
कुछ महीने सब हंसी खुशी से रहे । पर कुछ वर्षों से एक नया समाज , हम दो हमारा एक की नींव रख रहा था, ये तो कोरोना है, जिसने सबको सबके साथ रहने को मजबूर कर दिया ।
अब रवीना को अपना स्वच्छंद बड़े शहर का जीवन याद आ रहा है, धीरे धीरे फिर घर मे सब मौन हो रहे थे, मन मे कोलाहल था , किसी न किसी बात पर रोज घर मे कलह हो रही है । लॉक डाउन के कारण घूमना फिरना भी छूट गया था ।
और ये कलह रोज बढ़ती गयी, और कमाऊ रवीना अपने बेटे को लेकर मायके चली गयी, रवीना की मम्मी ने दुनिया देखी थी, संयुक्त परिवार का अनुभव भी था । उन्होंने उसे समझाया, माना तुम्हे आदत नही है सबके साथ रहने की, सबके नखरे सहने की, पर जब अलग अलग दुकानों से लाकर घर मे बर्तन सजाती हो, आवाज़ अलग रहती है, कुछ हमे नही भी भाती हैं, पर फेंक नही पाते है, सब उपयोगी है । वैसे ही समय के अनुसार रहना सीखो, वो उम्रदराज लोग अगर परिस्थिति से समझौता करते हैं तो एहसान मानो और तुम वही जाओ ।