नीलू का आज पहला करवाचौथ का व्रत था। नीलू की सास ने सरगी देकर उसे करवाचौथ की पूरी विधि समझाई। हालांकि नीलू ने अपनी मम्मी को करते हुए देखा था, पर हर घर के रीति रिवाज थोड़े बहुत अलग होते हैं तो नीलू ने बड़े ध्यान से विधि को समझा।
" नीलू, शाम चार बजे तैयार रहना। बाजू वाली चाची के यहां करवा माता की पूजा करने जाना है। वहां से आने के बाद हम चांद का इंतज़ार करेंगे और फिर होगी तुम्हारी पहली करवाचौथ की पूजा, और हां अनिल को बोल देना समय से घर आ जाए।" नीलू की सास ने कहा।
' ठीक है मम्मी जी, मैं तैयार रहूंगी। इनको पहले ही कह दिया है। ये आ जाएंगे।'
' टिफिन तो रखा था ना उसका या भूल गई। आज उसके हाथ में टिफिन नहीं देखा मैंने। सुबह नाश्ता भी नहीं किया।'
' मम्मी जी, मैंने नाश्ता लगाया था उनका पर वो बोले की जरूरी मीटिंग में जाना है, तो जल्दी जल्दी में टिफिन भी छोड़ गए और नाश्ता भी नहीं किया।
" कहीं लल्ला ने तो व्रत नहीं रख लिया, औरतों की चीजें औरतों पे ही अच्छी लगती है।"
नीलू को थोड़ा अजीब लगा। पर फिर सोची हां सही तो है। करवाचौथ तो औरतों का व्रत है वहीं रखती हैं। मर्द थोड़ी करते हैं ये सब, और खुशकिस्मत होगी वो जिनके पति अपनी पत्नी के लिए दिनभर भूखे रह के उसकी लम्बी आयु के लिए दुआ करे। ख़ैर शाम हो गई,नीलू और उसकी सास पूजा करके आ चुकी थीं। अनिल भी आ चुके थे। कमरे में अनिल ने नीलू को अपनी बाहों में पकड़ते हुए कहा,
" तो भाई, अब मैं सौ साल जीने वाला हूं। मेरी बीवी ने आज मेरे लिए भूखे प्यासे रह के व्रत किया है तो भगवान इतना तो कर ही सकते हैं तुम्हारे लिए। पर कुछ भी कहो, आज बड़ी चमक है तुम्हारे चेहरे पे, भूखे रहने के बाद भी। नज़र ना लगे मेरी जान को मेरी।"
पर मन ही मन शिखा सोच रही थी कि कभी उपवास नहीं रखा फिर तो ये निर्जला व्रत है। कब चांद आए और व्रत खोले। भूख से हाल बेहाल था। और आप क्या जाने जी, भूखे प्यासे क्या हाल होता है हम औरतों का। ख़ैर उधेड़बुन की स्थिति खत्म हुई और चांद बिना देर किए आसमान पे अपनी छटा बिखेरने लगा। नीलू और उसकी सास छत पे अपने अपने पतियों के साथ पहुंचे और पूजा करने लगे। छलनी से देख नीलू ने अपने पति की आरती उतारी और आशीर्वाद लिया। अनिल उसे बहुत ध्यान से पूजा करते हुए देख रहा था। पूजा खत्म हुई और व्रत खोलने की घड़ी आई।
' चलो जी, जल्दी पानी पिला दो।' नीलू ने पानी से भरा गिलास अनिल को देते हुए कहा।
' अरे भाई, पूजा कहां खत्म हुई है अभी। मैंने तो की नही तुम्हारी। मैं भी तो अपनी पत्नी की लंबी उम्र की दुआ करूं।'
' अरे लल्ला तेरा दिमाग तो ठीक है। तू क्यों करेगा बहू की पूजा?' नीलू की सास ने आंखें तरेर कर अनिल को देखा।
' क्यों मां, मैंने भी तो व्रत रखा है अपनी बीवी के लिए। जब वो मेरे लंबी आयु के लिए भूखे प्यासे रह के मेरे लिए व्रत रख सकती है तो मैं क्यों नहीं। मैं अकेला जी के क्या करूंगा मां, जब मेरी पत्नी मेरे साथ नहीं होगी। उसे भी तो मेरे साथ मेरे लिए जीना होगा ना मां। क्या पापा नहीं चाहते कि आप उनके साथ हमेशा रहें? तो अगर मैंने चाहा तो क्या गलत किया? '
' बस मां, सिर्फ बहू क्यों करे? पति का भी तो कुछ फर्ज़ है ना मां।'
नीलू की सास चुप चाप अपने बेटे को अपनी बहू की आरती उतारते देख रही थी। अनिल ने मन से नीलू की आरती उतारी, और भगवान से उसकी सलामती, खुशी और लंबी उम्र की दुआ मांगी। नीलू आंखों में आंसू लिए अनिल को देख रही थी। पूजा के बाद जैसे ही अनिल ने नीलू के पैर छुए, नीलू एक दम से पीछे हो गई। नीलू की सास को जैसे दिल का दौरा पड़ते पड़ते बचा। और वो चिल्ला पड़ी,
" तेरा दिमाग पूरी तरह खराब हो चुका है अनिल। ये क्या कर रहा है? तू बहू के पैर छू रहा है? हमारे समाज में, हमारे घर में ऐसा किसी ने नहीं किया। कौन आदमी अपनी औरत के पैर छूता है?"
" पर मां, नीलू ने भी तो छुआ मेरे पैर। मैं भी तो वही कर रहा हूं।"
" हमारे देश में पति को देवता माना जाता है, इसलिए औरतें पति के पैर छूती हैं। और ये इसलिए भी होता है कि उसे सौभाग्य मिले, पुत्र प्राप्ति हो, उसके पाप कट जाएं। ये नियम है लल्ला। तू उसके पैर छू के नियम का अपमान कर रहा है। औरतों का फर्ज़ है मर्द के सामने झुकने का। मर्द सर उठा के चलता है झुका के नहीं।" नीलू की सास की आवाज अब तेज हो चुकी थी। गुस्सा साफ दिख रहा था।
" मां ठीक कहती हो तुम की हम पति देवता हैं, तो पत्नी को भी तो लक्ष्मी का दर्जा मिला है। तुम ही कहती हो कि नीलू लक्ष्मी है। तुम भी तो रोज सुबह भगवान के पैर छूती हो, लक्ष्मी जी के। पर मेरे घर पे साक्षात् लक्ष्मी का निवास है तो मैं नीलू के पैर क्यों नहीं छू सकता। दुनिया को जो कहना है कहे मुझे परवाह नहीं। "
सास सर पीटते हुए नीचे चली गई। नीलू की आंखों से आंसू अब भी बह रहे थे। उसने कुछ कहना चाहा पर अनिल ने अपने हाथ उसके होठों पे रख दिए।
' नीलू, तुमने जो भी मेरे लिए किया उसका तहे दिल से धन्यवाद.. हर जन्म मुझे तुम मिलो आज बस यही मांगता हूं।'
नीलू को आज सब कुछ मिल गया। दोनों ने एक दूसरे का व्रत खोला और एक दूसरे का हर परिस्थिति में साथ निभाने का वादा किया।
नोट - दोस्तों ये कहानी काल्पनिक नहीं है,मेरे एक दोस्त की अपनी कहानी है। तो आप सब ये ना सोचे की ऐसे पति नहीं होते।लेकिन वो औरत खुशनसीब हैं जिन्हें ऐसे पति मिलते हैं। समाज पत्नी के पैर छूने की इजाजत किसी को नहीं देता, लेकिन मारने पीटने की देता है। तो फिर उसे लक्ष्मी की संज्ञा क्यों देते हैं। पत्नी साक्षात् दुर्गा और लक्ष्मी का रूप है, अगर आप अपनी पत्नी की इज्जत करते हैं तो भगवान आपके घर में विराजमान हैं। अगर नहीं करते तो आपका डूबना तय है।