22 वर्षीय नव्या, सुंदर हिरनी जैसी चाल, चंचल ,फैशन डिजाइनिंग के आखिरी वर्ष में थी। दिन भर घर पर मस्ती करती रहती। कालेज में भी सबकी चहेती थी। कालेज में उसके दोस्त भी थे, सहेलियां भी थी, और एक दोस्त अरिंदम से वह बहुत नजदीक थी, या यूं कहें कि दोनों मिलकर भविष्य के सपने बुनने लगे थे ।
नव्या की मम्मी संध्या अपने पति सुदीप एवं छोटे बेटे आर्यन के साथ खुशहाल जिंदगी यापन कर रही है। इन दिनों नव्या के नए-नए रंगों को देखकर संध्या के मन में आ रहा है ,कि नव्या कौन सी दुनिया में खोई हुई है।
दिन भर मोबाइल से चिपकी रहती, और एकदम खुले दिमाग की थी तो अपनी मां को भी अरिंदम के बारे में कुछ कुछ बताती रहती।
नव्या को खुश देख कर संध्या को अपनी बीती हुई जिंदगी याद आने लगी।।
वह भी कालेज के दिनों में इसी प्रकार खुश थी, और कॉलेज में अनिल से उसके अच्छी दोस्ती थी। लेकिन वह खुले मन से अपनी दोस्ती ,अपने मम्मी और पापा को नहीं बता पाई। पापा अच्छे थे, पर बहुत अनुशासन प्रिय थे और उन्हें किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता पंसद नहीं थी।
एक दिन उसने देखा कि उसके पापा मम्मी दोनों बात कर रहे हैं कि संध्या बड़ी हो रही है ,हमें उसके हाथ पीले कर देना चाहिए। यह बात संध्या ने सुन ली, उसका दिल बहुत उदास हो गया। वह अनिल के साथ नए जीवन के सपने बुन रही थी।
आज जब वह कॉलेज गई तो उसने अनिल से अपने मन की व्यथा को अनिल से कहा, ऐसा कैसे हो सकता है? मैं आज ही जाकर तुम्हारे पापा से बात करता हूं। शाम को ही वह उसके पापा से मिलने के लिए घर आ गया और बगैर किसी लाग लपेट के उसने अपने हृदय की बात कह दी की वह संध्या को अपनी जीवनसाथी बनाना चाहता है। लेकिन पिताजी तो किसी बात को सुनने को तैयार ही नहीं थे। प्रेम विवाह को लेकर उनके मन में बहुत ही पूर्वाग्रह थे, और उन्हें लगता था कि माता-पिता की पसंद से किया गया विवाह ही सही है ।जाति की भिन्नता भी थी, अतः पिताजी की तरफ से हां मिलना बहुत कठिन था। मां पिताजी के सामने कुछ बोल ही नहीं पाती थी।
बेबस संध्या सब कुछ देखती रही और अनिल उदासी के साथ घर से निकल गया। शाम का समय था, ट्रैफिक बहुत था ।अनिल के मन में उधेड़बुन चल रही थी, और सामने से आते हुए ट्रक ने इतनी जोर से टक्कर मारी की अनिल का जीवन वही खत्म हो गया। बेबस संध्या उसके माता-पिता से मिलने तक भी नहीं जा सकी और अपने मन की व्यथा किसी को कभी नहीं सकी।
उसके बाद उसके माता-पिता ने उसका विवाह सुशिक्षित सुदीप के साथ कर दिया। सुदीप के साथ उसका जीवन अच्छे से बीत रहा था, फिर भी मन का एक कोना कभी न कभी अनिल की याद दिला देता था, सोचती थी कैसा है? हमारा समाज प्रेम विवाह को क्यों इतनी बुरी नजरों से देखा जाता है। विवाह तो दो आत्माओं का मिलन होता है। विवाह की शर्त यही है कि पति पत्नी सुख पूर्वक जीवन का निर्वाह करें। प्रेम विवाह मे एक दूसरे को थोड़ा समझते हैं ,तो जीवन थोड़ा आसान हो जाता है। माता-पिता की पसंद का विवाह भी कभी-सफल हो जाता है ,कभी असफल हो जाता है। इसी प्रकार की उधेड़बुन उसके दिल में चलती रहती।
लेकिन उसके दिल से आवाज निकलती थी कि जिस पीड़ा को मैंने भोगा है, वह मेरी बिटिया को नहीं होने दूंगी ।उसकी किस्मत तो अच्छी थी जो उसे सुदीप जिसे सुलझे हुए जीवन साथी मिले। नव्या के साथ वह किसी प्रकार की समझौते के लिए तैयार नहीं थी, और उसने अपने पति को नव्या की शादी अरिंदम से कराने के लिए अपना मानस तैयार कर लिया, और सुदीप ने भी इस बात की सहमति दे दी। सादे से समारोह में बिटिया नव्या का विवाह करके संध्या के हृदय से भार उतर गया, और उसे लगा कि अपनी बिटिया नव्या के उसने सही जगह हाथ पीले कर दिए।