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Kahaniya

पदचिह्न... Heartouching story

14 June 2021 11:39 AM Admin
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पदचिह्न...

सुधा....सुधा ....आँफिस से घरमे घुसते ही खुशी से झूमते मोहन लगभग चिल्लाते हुए बोला...
अरे...अरे...कया बात है आज तो आपके चेहरे का अलग ही रंग है बडे खुश लग रहे हो मोहनजी.... हमें भी तो बताओ आखिर इस खुशी का राज कया है....
सुधा ...तुम सुनोगी तो तुमभी झूम उठोगी ....मेरा प्रमोशन हो गया है और मुझे कम्पनी टांसफर के तहत दिल्ली जाना है दिल्ली..... बडे भैया भाभी के शहर....
अब हम लोग भैया भाभी से मिल पाएंगे सुधा ...देखना वे हमें देखकर कितने खुश होते है.....
खबर सुनकर सुधा भी मुस्कुरा उठी ....
थोड़े दिनो मे मोहन दिल्ली शिफ्ट हो गया.... और अगले ही दिन वह कर सुधा के साथ भैया-भाभी से मिलने चल पड़ा...
घण्टी बजाने पर एक लड़की ने दरवाजा खोला.....
जी.....
रोहनबाबू ....
लडकी बिना कुछ बोले साइट हट गई...
मोहन लगभग दौडते हुए अंदर गया तो देखा भैया एक कमरे में लेटे हुए थे.....
मुंह कुछ टेढापन सा हाथों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी मोहन को समझते देर नहीं लगी ....उन्हें लकवा हो गया है...तबतक भाभी भी रसोईघर से बाहर आ गई थी
भाभी भी इतने वर्षों में काफी कमजोर हो चुकी थी जिनके चेहरे पर वेदना व दुख को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता था
भाभी.....भैया आपकी यह हालत कैसे हो गई ...
और बच्चे कहां हैं आपकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है क्या...ये लडकी कौन है....
बडे भैया की आंखों से तो केवल गंगा जमुना ही बह रही थी...
तब भाभी ने ही बताया ....मोहन ....मेरे दोनों बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी में मस्त है यहां आकर हमें सम्भालने के लिए उनके पास समय ही नही है...
तुम्हारे भैया को अब अच्छे डाक्टर और देखभाल की जरूरत है जो पैसों की कमी की वजह से नही हो पा रही है....जैसे तैसे मे लोगों के यहां से कपडे सिलने के लाकर गुजारा कर रही हूं ....पीछे से इनकी देखभाल के लिए ये लडकी रहती है ....कहकर भाभी सुबक पडी...
ये सुनते ही मोहन को धक्का लगा और यादों की परत दर पर खुलती हुई उस दिन पर जा अटकी जब भैया का सामान पैक हो चुका था वह उसे और मां को छोड़कर जा रहे थे....शहर ...
भैया.....आप हमें इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते...
मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगा ...प्लीज भाभी---आप ही भैया को समझाओ ना.... हम कम खाकर गुजारा कर लेंगे लेकिन अलग नहीं रहेंगे....
उसवक्त भाभी ने भी उस समय बडे भैया को समझाने की कोशिश की थी लेकिन वह भी भैया की जिद तोड़ने में कामयाब ना हो पाई थी...
मोहन गिड़गिड़ाए जा रहा था लेकिन भैया संवेदनाओं को नकारते हुए उसे और मां को अनदेखा करते घर छोडकर चले गए.......
जब मोहन के पिताजी की मृत्यु हुई तब वो केवल आठ वर्ष का था उसवक्त बडे भैया का स्नेह भरा हाथ सिरपर पाकर वो हमेशा पिता की रिक्तियों को पूरा समझते हुए बड़ा हो रहा था....
लेकिन थोडे समय बाद पता नहीं नई नौकरी का मोह था या बडे भैया को जिम्मेदारियां भारी लगने लगी थी....उन्होंने गांव छोडकर शहर में रहने का फैसला कर लिया था....वो निष्ठुर होकर उसे और बुजुर्ग मां को छोड़ कर सपरिवार शहर चले गए थे...
कुछ सालों तक भैया ने आना जाना व पैसे भेजना निरन्तर जारी रखा परन्तु बाद में वह सब भी बंद हो गया था लेकिन समय भी कहा किसे के रोके रुकता है...
अच्छा निकले या बुरा निकलता जाता है....
गांव में दोनों मां-बेटे भी अपनी जिंदगी को किसी तरह जीने की कोशिश कर रहे थे....मोहन पढ़ाई में अच्छा था , सो छात्रवृति के सहारे अच्छा पढ लिख गया... कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ानी भी शुरू कर दी थी जिससे खर्च चलाना आसान हो गया था...मां के हौंसलो और उसकी निरन्तर मेहनत से एक ऊंचाई को नापता हुआ वह एक बड़ी कम्पनी मे अच्छी पद का अधिकारी बन गया था...
सुधा से शादी के वक्त भी भैया-भाभी औपचारिकता के लिए केवल दो दिन आए थे....
उसके बाद बीते कयी वर्षों में कभी मिलना भी नही हुआ....यदाकदा चिठ्ठी मिल जाती थी खैरखबर की फिर वो भी बंद हो गई ....फिर मां सहित वो मुम्बई शिफ्ट हो गया ....और वही का होकर रह गया था...
भैया की गर्र गर्र ररर की आवाज से वो अतितो से वर्तमान में लौट आया...मोहन ने उनकी और देखा तो लगा जैसे वह कुछ कहना चाह रहे है....
भाभी को देखते हुए मोहन कहा ...भैया...भाभी.... आप चिंता मत करिए आज से हम लोग एक साथ ही रहेंगे और भैया का अच्छा इलाज़ भी करवाएंगे....
तभी सुधा बोल उठी ....हां भाभी ....
आप बिलकुल चिंता मत करिए सब ठीक हो जाएगा इतने वर्षों तक इनकी आंखों में मैंने एक सूनापन देखा है जो भैया के घर छोड़कर जाते हुए पदचिन्हों का हमेशा पीछा करता रहा है और आज आप लोगों को देख कर उनके चेहरे पर जो चमक आई है वह किसी सपने के पूरे होने से कम नही है...
भैया की आँखें एक तरफ़ घूमकर वहां मेज पर रखी उनकी बच्चों के साथ तस्वीर पर अटक गई जहां उनके दोनों बच्चे भैया के कंधे पर बैठे थे....
आंखों से अनवरत बहते आँसू शायद कह रहे थे ...
देख रोहन...तू जैसा पदचिन्ह छोड़कर आया था...उन्हीं का अनुसरण तुम्हारे पुत्र कर रहे है.....इसलिए वह भी तुझे छोडकर ....और मेरा भाई ....मेरे पिताजी के पदचिन्हों का....जो आज भी मेरी गलतियों को दरकिनार करते हुए मेरे साथ खडा है ...
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