"सुनिए सुनील, वंदना दीदी का फोन आया है।कल अपने ससुराल वालों के साथ कान्हा किसली घूमने आ रही हैं।"
पत्नी रीमा के माथे पर चिंता की मध्यमवर्गीय लकीरें थीं।
वर्कशॉप से लौटा सुनील मुस्कुराया,"अरे वाह,ये तो बहुत अच्छी बात है।"
रीमा चिड़चिड़ा कर बोली," बात तो अच्छी है पर महीने के आखिरी दिनों में.... कैसे मैनेज करोगे?"
सुनील सोफे पर लेट गया,"हो जाएगा कुछ न कुछ इंतजाम। घबराओ मत, विकास से पैसे ले लेता हूं। दो शिफ्टों में काम करूंगा। धीरे धीरे उसके पैसे चुका दूंगा।
बहन , बेटियों के आने से बरकत होती है, पगली,उदास नहीं होते। "
रीमा ने तंज़ भरी आवाज़ में कहा,"ऐसा क्या?"
चाय पी कर वह बिना ज़वाब दिए बाहर निकल गया।
लौटने पर घर राशन पानी, मिठाइयां, नमकीन,नयी चादरें सहित सभी जरूरी सामानों से भर गया।
रीमा भी अनमने मन से ही सही काम में लग गई। दो दिन बड़ी चहल-पहल रही।
टैक्सियों से घूमना फिरना , फाइव स्टार होटल, शापिंग सब कुछ जोर-शोर से हुआ। आशीर्वाद देकर वंदना के सास ससुर, ननदोई ननद और जल्दी आने का वादा करते हुए भांजे भांजियां विदा हुए।
घर समेटती हुई रीमा बोली,मेरा थकावट से शरीर दर्द कर रहा है, लगता है कि बुखार चढ़ रहा है।
सुनील ने माथा छूकर देखा हां तुम्हें तेज बुखार है। तुम लेटो, काम मैं कर लूंगा। मैं अभी डाक्टर साहब से दवा पूछ कर लाता हूं।
कल पहने शर्ट से पर्स निकालते हुए सुनील ठिठक गया।जेब में लिफाफा?
खोल कर देखा तो एक मोटे लिफाफे में रुपए रखे थे और एक कागज की पर्ची पर लिखा था, "भैया, आपको मेरी कसम, इन्हें रख लिजिएगा और बिट्टू की चिंता नहीं करना।उसकी पढ़ाई के खर्च में भी मेरा योगदान रहेगा ।"
सुनील की भरी आंखों ने कहा, हां,बहन, बेटियां घर की बरकत होती हैं।"