तेरे बिना
मालती ने धीरे से मोहन जी को बिस्तर पर लिटाया , उनके पलकों में उतर आईं बूंदो को अपनी साडी के पल्लू से पोंछ बोली
" क्या बात है? "
" कितना कष्ट दे रहा हूँ तुम्हे? इससे तो भगवान उठा ले मुझे ।"
'कैसी बात कर रहे हो ?तुम को लगता है मैं कष्ट पा रही हूँ?एक बात और बता देती हूँ, मेरी तपस्या का फल मिलेगा मुझे ।तुम से पहले ही जाने वाली हूँ मैं ।"
तुम्हारे बिना कैसे जियूँगा यह सोचा है तुमने ।दस साल हो गये मुझे बिस्तर पर,और कितना परेशान करूँगा तुमको?'
"बस अब और एक शब्द भी नहीं ।वरना मै उठ कर चली जाऊँगी ।"
मोहन जी चुप होकर सोचने लगे
' कितनी सफाई पसंद , पहनने की सजाने सँवरने की शौकीन , तरह तरह के व्यंजन बनाने , खाने , खिलाने की शौकीन, पूजा पाठ मे घण्टों लगाने वाली मालती बस उनके इर्द गिर्द ही सिमट कर रह गई है ।
न और कुछ करने का समय , न इच्छा ही रह गई उसकी,
खाती भी वही है जो वो खाते हैं, दलिया , खिचड़ी,सब कुछ परहेज का।और चेहरे पर तनिक भी तो शिकन नहीं , हँसते हँसते सब काम।'
एक गहरी ठंडी साँस ली
उन्होंने ।
फिर उस दिन दोनों को बुखार।मालतीदेवी को अपनी चिन्ता नही थी पर मोहन जी तो पहले ही तरह तरह की दवाएं खा रहे थे उनकी तबियत अधिक खराब थी ,इसलिये उनके साथ खुद भी अस्पताल में भर्ती हो गई ।
बेटा परदेश से आ गया था।
जाने क्या हुआ शायद मालती को तपस्या का फल मिलना था ,सुबह उन का हार्ट फ़ेल हो गया ।
मोहनजी को किसी ने खबर नही की ।बस यह बताया तबियत खराब है।
पर उन्हें आभास होने लगा था इतने दिन उनके पास आये बिना उनको देखे बिना रह सकती थी भला।
उनके बिना अपने जीवन की कल्पना ही नही कर सकते थे , और वही हुआ उनका नाम लेते हुए वे, ,"तुम नहीं, तो मै नही।"
कहकर चले गये अपनी मालती के पास , हमेशा साथ रहने के लिये।