मेरी प्यारी बिटिया
*सुबह के साढ़े सात बजे जब ज्योति स्कूल के लिए तैयार हुई, तो चुपके से ऊपर मम्मी के बेडरूम में गई। धीरे से डोर सरकाया देखा तो सारा सामान बिखरा पड़ा था।*
*नीचे ड्राइंग रूम में आई पापा सोफे पर बेसुध से सो रहे थे। अपने रुम में आकर उसने अपनी गुल्लक में से पचास रुपए निकाल कर पौकेट में रख लिए। बैग उठा कर स्कूल बस के लिए निकलने लगी तो सरोज आई ने पीछे से अवाज लगाई - "ज्योति बेटा आलू का परांठा बनाया है खा लो"*
*ज्योति ने मायूस नजरों से सरोज आंटी को देखा-*
*"नहीं आंटी भूख नहीं है"*
*सरोज ने जबरदस्ती टिफिन उसके बैग में डाला। ज्योति स्कूल के लिए निकल गई सरोज सोचने लगी बेचारी छोटी सी बच्ची साहब और मेमसाब के रोज के लडा़ई झगडे से इस तेरह साल की उम्र में कितनी बड़ी हो गई है।*
*सरोज पिछले दस सालों से नेहा व नरेश के यहां काम कर रही है। दोनों मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं। ज्योति उनकी इकलौती बेटी है किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है, पर हर समय दोनों एक दूसरे से लड़ते रहते हैं।*
*नरेश पिछले कुछ समय से नेहा से तलाक चाह रहा है और चाहता है ज्योति बिटिया की जिम्मेदारी नेहा उठाए और नेहा ज्योति बिटिया की जिम्मेदारी नरेश को देने के साथ जायदाद में हिस्सा चाहती है। इस कारण दोनों लड़ते रहते हैं।*
*बच्चे की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता इसलिए दोनों एक दूसरे के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं। बेचारी ज्योति स्कूल से घर आकर अपने कमरे में दुबक जाती है केवल सरोज आंटी से ही बात करती है।*
*रोज की तरह नेहा और नरेश ने नाश्ता अपने अपने कमरे में किया और ऑफिस के लिए निकल गये। करीब बारह बजे स्कूल से कॉल आया कि जल्दी हास्पिटल पहुंचो ज्योति को चोट आई है। हास्पिटल पहुंच कर पता चला कि ज्योति बहुत ऊपर से सीढ़ियों से गिर गई है। आईसीयू में रखा गया था। आपरेशन की तैयारी हो रही थी। सिर में बहुत गहरी चोट आई थी। आपरेशन शुरू हुआ। पर जिंदगी मिली न मौत ,बिटिया कौमा में चली गई।*
*नेहा और नरेश स्तब्ध रह गए । उन्हें ऐसा झटका लगा था कि अपनी सुध-बुध ही खो बैठे थे। ज्योति की दादी भी आ गई थी बेटा बहू को देखकर नफरत से मुंह फेर लिया।*
*पूछताछ हुई टीचर स्टुडेंट्स सभी के बयान लिए गए यही पता चला कि बैलेंस बिगड़ने से नीचे गिर गई।*
*15-20 दिन कोई बदलाव न आने के बाद अपने साथ रह रही अपनी मां को नरेश ने रोकना चाहा पर उन्होंने आंखों में आंसू भर कर कहा "तुम दोनों खूनी हो तुम्हारी जिद मेरी पोती को खा गई। मैं उसे अपने साथ ले जाना चाहती थी पर तुम दोनों ने उसे अपने अहम का मोहरा बना कर उसकी ये हालत कर दी" ये कहकर मां वापिस अपने शहर चली गई।*
*सरोज तब से सदमे में थी फिर उसने जैसे तैसे होश संभाला नरेश और नेहा से कहा "मेमसाब मैं अब यहां नहीं रह पाऊंगी, इस घर की दीवारें मेरी ज्योति की सिसकियों से भरी हैं। उसे मैंने कभी अपनी गोद में तो कभी छिप कर रोते हुए देखा है । कभी तो मेरा मन किया कि उसे लेकर भाग जाऊं, पर मैं डरपोक थी ऐसा नहीं कर सकी। अगर चली जाती तो शायद वो आज इस हालत में न होती"*
*नरेश और नेहा के पास अब शायद कहने को कुछ नहीं था। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे उनका लडा़ई झगड़ा एक अजीब सी बर्फ में में तब्दील हो चुका था।उनकी सारी भावनाएं अंदर ही अंदर एक खामोशी अख्तियार कर चुकी थी।*
*सारा दिन बेमन से दोनों आफिस का काम करते, हॉस्पिटल में एक एक दिन अकेले ड्यूटी देते, बैंक में पड़े पैसे,जमीन जायदाद सब बेकार से लगने लगे थे।*
*3 महीने बीत चुके थे, संडे का दिन था बड़ी मुश्किल से नेहा ने ज्योति के रूम में जाने की हिम्मत जुटाई थी वैसे भी महीनों दोनों उसके कमरे में कदम नहीं रखते थे कैसे मां बाप थे वो दोनों।*
*उसका रूम,उसका बेड, तकिया,उसकी किताबें, उसकी पेंसिल, पैन,स्कूल बैग सब वैसे ही रखा था।*
*अलमारी खोली तो उसके कपड़े नीचे गिर पड़े उसका हल्का ब्लू नाइट सूट जिसे वह अक्सर पहना करती थी। नेहा रोते हुए अलमारी से सामान निकालने लगी।*
*तभी उसके हाथ एक ब्लू कलर की डायरी लगी। उसने कांपते हाथों से उसे खोला आगे के कुछ पेज फटे हुए थे। पेज दर पेज टूटे दिल की दास्तां छोटे छोटे टुकड़ों में दर्ज थी–*
*मम्मी पापा मैं आपको डियर नहीं लिखूंगी । क्योंकि डियर का मीनिंग प्यारा होता है। पापा आप मम्मी को कहते हो कि तुम्हारी बेटी। और मम्मी आप पापा को कहते हो तुम्हारी बेटी आप दोनों ये क्यों नहीं कहते हो हमारी बेटी।*
*अगले पेज पर था–पता है जब मैं मामा जी के घर जाती हूं मामा मामी मुझे बहुत प्यार करते हैं मामी अनु को जब प्यार से मेरा बच्चा कहती हैं तो मुझे लगता है कि क्या मैं प्यारी बच्ची नहीं हूं ?मम्मा मैं तो आपका सारा कहना मानती हूं फिर भी आपने मुझे कभी प्यारी बच्ची नहीं कहा।*
*अगले पेज पर था–मम्मी जब मैं बुआ के घर जाती हूं तो बुआ मुझे बहुत प्यार करती हैं। पर खाना नक्ष की पंसद का बनाती हैं मम्मा मुझे भी राजमा बहुत पसंद है मैंने कहा था कि आप बनाओ पर आपने कहा मुझे मत तंग किया करो। जो खाना है सरोज आंटी को बोला करो। पता है मम्मा मैंने राजमा खाना छोड़ दिया है।अब मन नहीं करता।*
*अगले पेज पर था–पापा मैं आपके साथ आइसक्रीम खाने जाना चाहती थी पर आपने कहा आपके पास फालतू चीजों के लिए टाइम नहीं है। पापा जब चीनू मासी और मौसा जी मुझे और विपुल को आइसक्रीम खाने ले जा सकते हैं तो फिर वो क्यों नहीं कहते कि ये सब फालतू चीजें हैं।*
*पता है मम्मी मैं अपने घर से दूर जाना चाहती हूं जहां मुझे ये न सुनाई दे कि ज्योति को मैं नहीं रखूंगी। जहां पापा के चिल्लाने की आवाज न सुनाई दे। पापा अगर मैं बड़ी होती तो मैं आप दोनों को कभी परेशान नहीं करती मैं खुद ही चली जाती। मैं तो आप दोनों से बहुत प्यार करती हूं। पापा मम्मी आप दोनों मुझे प्यार क्यों नही करते।*
*एक पेज पर था–आइलव यू सरोज आंटी मुझे प्यार करने के लिए। जब मुझे डर लगता है तो अपने पास सुलाने के लिए।मेरी हर बात सुनने के लिए।*
*और अंतिम पेज पर था दादी आई लव यू आप मुझे यहां से ले जाओ आइ प्रामिस कभी तंग नहीं करूंगी।*
*नेहा डायरी को सीने से लगा कर जोर जोर से रो पड़ी।नरेश भी उसके रोने की आवाज सुनकर आ गया था नेहा ने डायरी उसे पकडा़ दी। पेज दर पेज पलटते हुए उसके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे। वह खुद को संभाल नहीं पाया जमीन पर बैठ गया।*
*नेहा रोते हुए बोली नरेश पता है वो एक्सीडेंट नहीं आत्महत्या थी, सुसाइड था, जिस रिश्ते को हम बोझ समझते थे। हमारी ज्योति ने उससे हमें आजाद कर दिया।*
*नरेश हम दोनों ही अपनी बच्ची की इस हालत के कसूरवार हैं, नरेश भी नेहा को गले लगाकर फूट-फूट कर रोने लगा।*
*अचानक ही उसी समय नरेश का फ़ोन बजा और नेहा के मोबाइल पर SMS की टूँ टूँ की मेसज की आवाज हुई। दोनों ने अपने को संभालते हुए दूरी बनाए और फ़ोन उठाये।*
*हॉस्पिटल से ही फ़ोन था, जबतक नेहा, नरेश की बातचीत सुनती, उसके अपने फ़ोन में भी sms खुल चुका था,पढ़ते ही नेहा के मुंह से अचानक निकला-*
*"मेरी प्यारी बिटिया को होश आ गया"* *यही शब्द नरेश के मुंह से भी निकले थे, एक साथ दोनों के स्वर,चेहरे पर खुशी उस कमरे में गूंज उठी थी।*
*ये कहानी हर उस घर की है*
*जहां मां-बाप बच्चों के सामने लड़ते हैं या घर टूट कर बिखरते हैं और उसका सबसे बड़ा खामियाजा बच्चे भरते हैं।अगर आप अच्छी परवरिश नहीं दे सकते तो आपको बच्चे को जन्म देने का कोई अधिकार नहीं है। अच्छी परवरिश रुपए पैसे सुख सुविधाओं से नहीं होती,इसका मतलब यह है कि आप बच्चे की जरूरत के समय उसके कितने करीब हैं! उसे महंगे खिलोने या सुख सुविधाएं नही बल्कि आपके साथ खेलने कूदने,मस्ती,लाड प्यार का समय चाहिए ।*
कहानी अच्छी लगी हो तो कमेंट करे या और शेयर करें